कला के कई प्रकार होते हैं और इन प्रकारों का परिगणन भिन्न-भिन्न रीतियों से
होता है। (क) मोटे तौर पर जिस वस्तु रूप अथवा तत्त्व का निर्माण किया जाता है, उसी के नाम पर इस कला का प्रकार कहलाता है, जैसे-
वास्तुकला या स्थापत्य कला : अर्थात् भवन-निर्माण कला, जैसे—दुर्ग, प्रासाद, मंदिर, स्तूप, चैत्य, मकबरे आदि-आदि।
मूर्तिकला : पत्थर या धातु की छोटी-बड़ी मूर्तियाँ। चित्रकला : भवन की भित्तियों, छतों या स्तम्भों पर अथवा वस्त्र, भोजपत्र या कागज पर अंकित चित्र। मृदभाडकला : मिट्टी के बर्तन मुद्राकला: सिक्के या मोहरें। ।
(ख) कभी-कभी जिस पदार्थ से कलाकृतियों का निर्माण किया जाता है, उस पदार्थ पर उस कला का प्रकार जाना जाता है, जैसे— नाम
प्रस्तरकला : पत्थर से गढ़ी हुई आकृतियाँ।
धातुकला : काँसे, ताँबे अथवा पीतल से बनाई गई मूर्तियाँ।
दंतकला : हाथी के दाँत से निर्मित कलाकृतियाँ
मृतिका – कला : मिट्टी से निर्मित कलाकृतियाँ या खिलौने।
चित्रकला : ऊपर कहे गये सामान। (ग) मूर्तिकला भी अपनी निर्माण शैली के आधार पर प्रायः दो प्रकार की होती है, जसे—
मूर्तिकला : जिसमें चारों ओर तराशकर मूर्ति का रूप दिया जाता है। ऐसी मूर्ति का अवलोकन आगे से, पीछे से तथा चारों ओर से किया जा सकता है।
उत्कीर्ण कला अथवा भास्कर्य कला : जिसमें पत्थर, चट्टान, धातु अथवा काष्ट के फलक पर उकेर कर रूपांकन किया जाता है। इस चपटे फलक का पृष्ठ भाग सपाट रहता है या फिर इसे दोनों और से उकेर कर दो अलग-अलग मूर्ति फलक बना दिये जाते है। किसी भवन या मंदिर की दीवार स्तम्भ अथवा भीतरी छत पर उत्कीर्ण मूर्तियों का केवल अग्रभाग ही दिखाई देता है, यद्यपि गहराई से उकेरकर उन्हें जीवन्त बना दिया जाता है। सिक्कों की आकृतियाँ भी इसी कोटि की होती है। चूंकि इसमें आधी आकृति बनाई जाती है. संभवत: इसीलिए इस अर्द्धचित्र भी कहा जाता है। ये अर्द्धचित्र (Bas-Relief) भी दो शैलियों में निर्मित होते हैं-
हाई रिलीफ (High Relief) : इसमें गहराई से तराशा जाता है, ताकि आकृतियों में अधिक उभार आये और जीवन्त हो सके।
लो रिलीफ (Low Relief) : इसमें हल्का तराशा जाता है, इसीलिए आकृतियों
में चपटापन सा रहता है।